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Wednesday, November 28, 2012

गुरु नानक साहिब

    धर्म को विक्रतिहीन करके उसकी मौलिक चमक प्रदान करने के लिए आगे आना एक नितांत साहसपूर्ण कदम होता है और यह कार्य बिरले ही कर पाते हैं। इसे बड़े विवेक, धैर्य और संयम से फलीभूत करके गुरु नानक देव जी ने युग की धारा को मोड़ दिया और अज्ञान 

Monday, November 26, 2012

भाव ही भक्ति है।

    मनुष्य को सत्य की ओर चलना है और यह मोक्ष की साधना है।यह दीक्षा के बिना संभव नहीं है। अगर कोई अँधेरे में चलता है तो उसे एक टार्च जैसे प्रकाश देने वाले यंत्र की जरुरत होती है, अन्यथा वह गहरी खायी में गिर जायेगा। उसी तरह साधना के पथ पर चलने वाले को भी टार्च (दीक्षा) की आवश्यकता होती है अन्यथा उसका अधःपतन हो जाता है। सीखना ज्ञान की साधना है। इस पथ पर चलना अर्थात नियमित साधना, कर्म की साधना है। भक्ति तो मोक्ष साधना का चरम बिंदु है। 
   ज्ञान क्या है? ब्रह्माण्ड का एक-एक कण परमात्मा की अभिव्यक्ति है।यह ज्ञान का सार है। ज्ञान की साधना क्या है? जब कोई साधक यह अनुभव करने लगता है कि प्रत्येक भौतिक विषय परमात्मा की ही अभिव्यक्ति है, तब वह साधक सिद्धांत के क्षेत्र से व्यवहारिक आचरण के क्षेत्र में प्रवेश कर जाता है। ब्रह्माण्ड परमात्मा का ही प्रकट रूप है। 
    कर्म साधना क्या है? कर्म साधना की सिद्धि या उपलब्धि क्या है? प्रत्येक भौतिक विषय वस्तु को परमात्मा की अभिव्यक्ति के रूप में सोचते हुए सेवा करना कर्म है, कर्म साधना है। ब्रह्माण्ड परमात्मा का ही प्रकट रूप है, इसकी अनुभूति करना सिद्धि या उपलब्धि कहलाती है। 
 

Sunday, November 25, 2012

अनुशासन

    व्यक्तित्व को प्रभावशाली बनाने के लिए अनुशासित रहना आवश्यक है। अनुशासन से मानवता का सीधा सम्बन्ध है। यह एक-दुसरे के बिना अर्थहीन है। आत्मानुशासन अपनाकर मनुष्य देवत्व को प्राप्त कर सकता है।अनुशासन एक शक्तिपुंज है। बिखराव का जीवन सामर्थ्यवान को असमर्थ कर देता है। अनुशासनविहीन समाज की कल्पना करने से ही मस्तिष्क में अराजकता की एक तस्वीर उभर आती है। स्वार्थप्रधान द्रष्टिकोण का बोलबाला रहता है, सभ्यता कोसों दूर छूट जाती है। भला ऐसे समाज या वातावरण में सहृदय मानव का निर्वाह क्या संभव होगा?
    मानव एक सामाजिक प्राणी है और वह अपने अनुकूल सामाजिक सरंचना चाहता है। continue  ..

Saturday, November 24, 2012

दिव्य उपहार

    प्रेम प्रभु का दिव्य उपहार है। अंतर्मन में इसके जागरण से मन प्रफुल्लित और पुलकित हो जाता है एवं हृदय पवित्र भावनाओं से स्पंदित होने लगता है। इसके जागरण से सर्वत्र आनंद की अनुभूति होने लगती है, क्योंकि परमात्मा सच्चिदानंद स्वरुप हैं। वासना प्रेम का प्रदुषण है।
    इस प्रदूषण ने आज पूरे जगत को प्रदूषित कर रखा है, लेकिन इसका रूपांतरण किया जा सकता है। इसका समाधान निहित है- उपनिषद के सर्वखल्विदं ब्रह्म में। अद्वैत वेदांत के इस सिद्धांत के अनुसार प्रभु जगत के कण-कण में विध्यमान है, परन्तु मानव की भेदद्रष्टि ही जगत की समस्याओं की जड़ है, जिसके समाप्त होते ही मनुष्य को जीवन के शाश्वत सत्य का बोध होने लगता है। प्रेम अपनी पूर्णता में पावन प्रकाश की छटा बिखेरता है। इसमें आनंद का दिव्य नाद निर्झर होता रहता है, जो जीवन पथ का पाथेय है। इसी आधार पर मनुष्य उचित-अनुचित, भले-बुरे का निर्णय लेता एवं इसी निर्णय क्षमता को विवेक, प्रज्ञा एवं मेधा आदि भिन्न-भिन्न नामों से जाना जाता है।
     प्रेम का यही पावन प्रकाश अमर्त्य एवं असत से सत का प्रशस्त करता है। मानव की दुरावस्था का एकमात्र कारण है-प्रभु के प्रेम एवं प्रकाश का घोर अभाव। जगत में वासना और अंधकार का गहरा आवरण पड़ा हुआ है। इस महापंक में जितना डुबो, अतृप्ति की ज्वाला उतनी ही भड़कती है।इस अतृप्ति से क्रोध और इसे पाने की का लोभ मचलता है। फिर इसे पा जाने पर इससे चिपके रहने की आसक्ति मोह के रूप में पनपती है। ये भोग प्रधान कामनाएं सभी आसुरी शक्तियों का मूल कारण हैं, परन्तु यही कामनाएं जब परिष्कृत हो जाती हैं तो इनका पवित्र रूप महाप्रसाद में परिवर्तित हो जाता है। यही महातृप्ति है। प्रभु की उपस्थिति मात्र से ही उनकी दिव्यता की आभा से मूर्छना समाप्त हो जाती है। कर्म-संस्कारों के बीच गल जाते हैं और आत्मा-परमात्मा से मिलने को आकुल-व्याकुल हो उठती है।
-रवि कुमार सिंह  

Friday, November 23, 2012

हकीकत

  • 20 रूपये का नोट बहुत ज्यादा लगता है, जब किसी गरीब को देना हो, मगर होटल में टिप देना हो तो बहुत कम लगता है। 
  •  3 मिनट भगवान को याद करना कितना मुश्किल है। मगर 3 घंटे फिल्म देखना कितना आसान है। 
  •  पूरे दिन मेहनत करने के बाद जिम जाने से नही थकते, परन्तु माँ-बाप के दबाने से थक जाते हैं। 
  •  वेलेंटाइन डे का पूरे साल इंतजार करते हैं, मगर "मदर डे" कब होता है मालूम नहीं। 
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